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Sri Kamakhya Devi Kavacham

मां कामाख्या देवी कवच (Sri Kamakhya Devi Kavacham)

ओं प्राच्यां रक्षतु मे तारा कामरूपनिवासिनी।
आग्नेय्यां षोडशी पातु याम्यां धूमावती स्वयम्।।

नैर्ऋत्यां भैरवी पातु वारुण्यां भुवनेश्वरी।
वायव्यां सततं पातु छिन्नमस्ता महेश्वरी।।

कौबेर्यां पातु मे देवी श्रीविद्या बगलामुखी।
ऐशान्यां पातु मे नित्यं महात्रिपुरसुन्दरी।।

ऊध्र्वरक्षतु मे विद्या मातंगी पीठवासिनी।
सर्वत: पातु मे नित्यं कामाख्या कलिकास्वयम्।।

ब्रह्मरूपा महाविद्या सर्वविद्यामयी स्वयम्।
शीर्षे रक्षतु मे दुर्गा भालं श्री भवगेहिनी।।

त्रिपुरा भ्रूयुगे पातु शर्वाणी पातु नासिकाम।
चक्षुषी चण्डिका पातु श्रोत्रे नीलसरस्वती।।

मुखं सौम्यमुखी पातु ग्रीवां रक्षतु पार्वती।
जिव्हां रक्षतु मे देवी जिव्हाललनभीषणा।।

वाग्देवी वदनं पातु वक्ष: पातु महेश्वरी।
बाहू महाभुजा पातु कराङ्गुली: सुरेश्वरी।।

पृष्ठत: पातु भीमास्या कट्यां देवी दिगम्बरी।
उदरं पातु मे नित्यं महाविद्या महोदरी।।

उग्रतारा महादेवी जङ्घोरू परिरक्षतु।
गुदं मुष्कं च मेदं च नाभिं च सुरसुंदरी।।

पादाङ्गुली: सदा पातु भवानी त्रिदशेश्वरी।
रक्तमासास्थिमज्जादीनपातु देवी शवासना।।

महाभयेषु घोरेषु महाभयनिवारिणी।
पातु देवी महामाया कामाख्यापीठवासिनी।।

भस्माचलगता दिव्यसिंहासनकृताश्रया।
पातु श्री कालिकादेवी सर्वोत्पातेषु सर्वदा।।

रक्षाहीनं तु यत्स्थानं कवचेनापि वर्जितम्।
तत्सर्वं सर्वदा पातु सर्वरक्षण कारिणी।।

इदं तु परमं गुह्यं कवचं मुनिसत्तम।
कामाख्या भयोक्तं ते सर्वरक्षाकरं परम्।।

अनेन कृत्वा रक्षां तु निर्भय: साधको भवेत।
न तं स्पृशेदभयं घोरं मन्त्रसिद्घि विरोधकम्।।

जायते च मन: सिद्घिर्निर्विघ्नेन महामते।
इदं यो धारयेत्कण्ठे बाहौ वा कवचं महत्।।

अव्याहताज्ञ: स भवेत्सर्वविद्याविशारद:।
सर्वत्र लभते सौख्यं मंगलं तु दिनेदिने।।

य: पठेत्प्रयतो भूत्वा कवचं चेदमद्भुतम्।
स देव्या: पदवीं याति सत्यं सत्यं न संशय:।।

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